सीमा असीम की दुनिया
Tuesday 1 July 2014
Thursday 12 June 2014
वे दरख़्त !!!
------------
उन दरख्तों का तिलिस्मी साया !
जकड लेता है जब अपनी छाँव तले !!
भर देता है
अहसास
सुस्ताने का
कुछ पल ठिठक जाने का
........................
बिछा देता है
नर्म, मुलायम, कोमल पत्तियां
प्रेम की गर्म सलाखों पर चले
पावों के नीचे
.................
उसूल गुरुर को तोडकर
काल्पनिक, स्वप्निल हयात में
विचरते हुए
दुआओं, को उठ जाते हैं हाथ
उनकी सलामती को
संतुष्टि, खुशहाली को !!!!...... @ सीमा असीमWednesday 11 June 2014
Subscribe to:
Posts (Atom)